आरक्षण और असमान दर्जा
शुरू करने से पहले आपको बतादूँ कि यहाँ आरक्षण का मतलब हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जाट, गुर्जर....(लिस्ट लंबी है तो यहीं खत्म करता हूँ) के
आरक्षण से बिलकुल भी नहीं हैं। बस पढ़िये और व्यथा को समझने के साथ साथ मज़ा लीजिये।
जब से भैंसों की कम्यूनिटी को यू पी के एक मंत्री जी की भैंसों की चोरी और चोरी
का केस सुलझाने मे पुलिस की तत्परता का पता चला है, तब से भैंस तो भैंस, उनके बच्चों के मन मे भी अजीब सी हलचल और व्यथा मची हुई है। अब उनके मन मे बार - बार यह टीस उठ रही है कि उनकी
किस्मत क्यो नहीं चमकती है, मतलब वे भी रसूखदार क्यो नहीं
हो सकतीं? कुछ भैंसें तो अपने मालिकों से सिर्फ इसलिए खफा चल
रहीं हैं कि उनके मालिक नेता या मंत्री की श्रेणी मे नहीं आते। कई भैंसें तो इस बात
पर अपना रोष जताने के लिए अजीबोगरीब हरकतें करते पायी गईं। मसलन दूध न निकालने देना, फुलक्रीम की जगह डबल टोंड दूध देना, वह भी दुहने वाले को
हर एक किलो दूध की कीमत के हिसाब से लाते देने के बाद। चारे की जगह इन्सानों वाले
भोजन और दूध देने के पहले डायरेक्ट थन से पूरे 5 मिनट अपना ही दूध पीना।
भैंस मालिक भी अचानक आई इस स्वराज जैसी आँधी से चकराये घूम रहे हैं और अपनी किस्मत
पर वे भी रो रहें हैं।
बात दो दिन पहले की है। मेरे गाँव और आसपास के गांवों की कुछ नेता टाइप भैंसों
ने इस विषय पर विचार विमर्श करने के लिए बिरादरी की एक महापंचायत बुलाने का फैसला किया।
तय हुआ कि अगले दिन शाम को जब उनके मालिक उन्हें चरने के लिए भेजेंगे तभी मीटिंग भी
हो जाएगी। सभी भैंसों ने एकदूसरे को सूचना दी और पंचायत मे जाने की तैयारी मे जुट गईं।
जमघट लग चुका था। कोई भी भैंस घास फूस खाते नहीं दिख रही थी। ठंड के दिन हैं तो सब खुले मैदान मे बैठी सनबाथ ले
रही थी। पाँच भैंसे अपनी साथियों को संबोधित कर रही थीं। -
“बहनो!” पाँच मे से सीनियर भैंस ने कहना शुरू किया, “जैसा कि आप सब जानती हैं कि हम यहाँ ओहदे के नाम पर हम पर जो भेदभाव वाला अत्याचार
हो रहा है, उसका प्रतिरोध करने के लिए इकट्ठा हुईं हैं।"
पंचो मे से दूसरी पंच ने खूब ज़ोर से अपना सिर हाँ मे हिलाते हुए कहना शुरू किया, "आप को तो पता ही होगा कि अब कुछ नेताओं और मंत्रियों की भैंसों को उनके
मालिकों की तरह ही मंत्रियों का ट्रीटमेंट दिया जा रहा है। बीवी बच्चों तक तो ठीक था, लेकिन अब भैंसों की जात मे भेदभाव, पक्षपात और आरक्षण नहीं
चलेगा।"
"हाँ! एकदम सही", तीसरी भैंस बोली, "ये रसूख वाला आरक्षण नहीं चलेगा।"
पाँचवीं भैंस ने आगे बढ़ कर अपनी बात रखी, "अरे! ये क्या
बात हुई भाई, कि मंत्री जी की भैंस है तो चोरी होने के अगले ही दिन
उन्हे बरामद कर सकुशल ज़ेड श्रेणी की सुरक्षा के साथ मंत्री जी के तबेले मे राजसी सम्मान
के साथ छोड़ भी आए।"
चौथी भैंस ने जमघट से सवाल किया, "क्यो बहनों?"
"हाँ! हाँ! बिलकुल सही बात है", बाकी भैंसों ने जवाब
दिया।
मुखिया भैंस ने अपना भाषण तैयार कर रखा था। वह आगे बोली, "बहनों! आप ही बताइये, क्या हमे यह अधिकार नहीं होना
चाहिए कि एक आम आदमी की आम भैंस को ज़ेड श्रेणी न सही लेकिन प्राइमरी सुरक्षा तो मिले।
जब से मंत्री जी की भैंसों वाली बात मुझे पता चली है, मैं तो बहुत हर्ट हुईं हूँ। ये हमारे निकम्मे मालिकों से तो नेतागिरी, मंत्रिगिरी, पुलिसगिरि, और गुंडागिरी...कुछ
नहीं हो सकती। हमे ही आगे बढ़ कुछ ठोस कदम उठाने होंगे।"
सभी भैंस बहुत ध्यान से अपनी सीनियर की बात सुन रही थीं और उसकी हाँ मे हाँ मिला
रही थीं। कुछ को अपने मालिकों को निकम्मा कहना थोड़ा अखर रहा था।
"बहनो!" मुखिया भैंस ने आगे कहा, "मैंने और हमारी
पंच बहनो ने अपनी मांगो का एक ख़ाका तैयार किया है। मैं चाहती हूँ कि आप इसे ध्यान से
सुने और अपनी - अपनी राय दें।
मांगों की लिस्ट –
१. "मंत्री जी की भैंसों की तरह ही प्रदेश की सारी भैंसों
को उचित सुरक्षा मुहैया करवाई जाये।"
२. "मंत्री जी अपनी भैंसों
को रसूखदार बताने वाले बयान को या तो वापस लें अथवा हमे भी वही रसूखवाला दर्जा देकर
अपना माफीनामा दें।"
३. "जो तत्परता पुलिस ने मंत्री
जी की भैंसों को ढूँढने मे दिखाई है, वही तत्परता हमारी खोयी हुई
बहनों को ढूँढने मे भी दिखाये और पुलिस लिखित
मे एक समय सीमा तय कर जमा करें।"
४. "भैंस के नाम पर काशी से
लेकर दिल्ली तक, राजनीतिक गलियारों मे जो राजनीति हो रही है, वह बंद हो। हमारी बिरादरी को राजनीति के कीचड़ मे न घुसेड़ा जाये।"
५. "पूरी बिरादरी की भैंसों
को एक श्रेणी मे रखा जाये, फिर चाहे कोई भैंस मंत्री, विधायक, सांसद, पार्षद या प्रधान की ही क्यो
न हो। हमे भी रसूखवाला ही ट्रीटमेंट मिलना चाहिए।"
६. "और आखिर मे... हम अपनी बातें लागू करने के लिए सरकार को दस दिन का समय
देंगे और
अगर समय सीमा पार हुई तो हम
बेमियादी हड़ताल करेंगे। साथ ही पूरे प्रदेश की भैंस बहने विधान भवन से लेकर
संसद भवन तक धरना प्रदर्शन करेंगी।"
सभी भैंस ऊपर दी गयी बातों पर एकमत हो गईं और हुंकार भरते हुए अपने अपने घरों(तबेलों)
की और लौट गईं।
सरकार और दूध का धंधा करने वाले लोग भैंसों की इस कारगुजारी को सुन कर चक्कर खा
गए। गिरने तक की नौबत आन पड़ी थी।
दस दिन के अल्टीमेटम के बाद भी बात बनती न देख भैंसे हड़ताल पर चली गयी। दो चार
दिन मे ही सीनियर भैंस ने दुनिया को बाय बाय कह दिया।
Aam Bhains Party |
बात फिर भी न बनती देख सेकंड सीनियर ने मोर्चा संभाला और उसकी अगुवाई मे भैंसों
ने अपनी एक अलग पॉलिटिकल पार्टी बनाई, जिसका नाम था - आ. भ. पा. यानि "आम भैंस
पार्टी।" आ. भ. पा. के चुनावी मेनिफेस्टो मे लिखा था - "एक आम भैंस के
हितों के लिए हमे भी राजनीति मे कूदना पड़ रहा है। हम अपनी बहनों से वादा
करते हैं कि हम समान व्यवहार वाली राजनीति करेंगे और किसी प्रकार की बत्ती और सुरक्षा
स्वीकार नहीं करेंगे.....अगर करेंगे तो हम सब साथ करेंगे।"
@अभिषेक अवस्थी